परिचय

अखिल भारतीय संस्कृत साहित्य सम्मेलन : परिचय


भारतरत्न महामना पं मदनमोहन मालवीय जी ने 1913 ई. में अखिल भारतीय संस्कृत साहित्य सम्मेलन की स्थापना की थी। 1917 में विधिवत रूप से इसका कार्य प्रारम्भ हुआ। इस सम्मेलन को तत्कालीन भारत के प्रसिद्ध विद्वान् महामहोपाध्याय शिवकुमारशास्त्री, डॉ. सर गंगानाथ झा, श्री सतीशचन्द्र, श्री विद्याभूषण, डॉ. टी. गणपति शास्त्री आदि महानुभावों का संरक्षण प्राप्त हुआ।

सम्मेलन ने भी एक अखिल भारतीय संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना 1962 ई. में की। भारत सरकार ने इसके लिए भूमि प्रदान की तथा स्व. नेपाल नरेश महाराजधिराज महेन्द्र जी ने इसका शिलान्यास किया था। सम्मेलन के प्रस्ताव पर इसका भारत सरकार ने अधिग्रहण कर लिया तथा इसका नाम श्रीलाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ हुआ।

इस दौरान अनेक कर्मठ एवं संस्कृतानुरागी महासचिव एवं पदाधिकारियों ने सम्मेलन की बागडोर संभाली। कई उतार-चढ़ाव देखे। इस दौरान सम्मेलन का कार्यभार डॉ. मण्डन मिश्र जी ने सम्भाला। कमला नगर में सम्मेलन के कार्यालय से सम्मेलन की गतिविधियाँ चलती रहीं। बाद में सम्मेलन का कार्यालय थियेटर कम्युनिकेशन बिल्डिंग में स्थानान्तरित हो गया। उसके बाद स्व. डॉ. गोस्वामी गिरिधारी लाल जी सम्मेलन के महासचिव बने। सम्मेलन के पास अपनी जमीन या कोई भवन नहीं था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी सम्मेलन की अध्यक्ष बनी। डॉ. गोस्वामी जी के अनुरोध पर श्रीमती गांधी की मदद से सम्मेलन को भवन के लिये एक भूखण्ड मिला।

उस समय के प्रतिष्ठित राजनेता, संस्कृतानुरागी अनन्त शयनम् अयङ्गार, श्री वी.एन. दातार, श्री उमाशङ्कर दीक्षित, श्री विद्याचरण शुक्ल, डॉ० प्रतापचन्द्र 'चन्द्र', डॉ० रघुवीर सिंह, डॉ० लोकेश चन्द्र, पं० केदारनाथ सारस्वत, पं० गिरधरशर्मा चतुर्वेदी, डॉ मण्डन मिश्र, डॉ० गिरधारी लाल गोस्वामी, डॉ० सत्यव्रत शास्त्री, डॉ० रामकरण शर्मा, डॉ० हर्षनाथ मिश्र, पं० अमीरचन्द्र शास्त्री, पं० विद्यानिधि पाण्डेय आदि संस्कृत विद्वान तथा प्रसिद्ध उद्योगपति श्री वैजनाथ भास्कर, श्री गिरधारीलाल सर्राफ, श्री चमनलाल कत्याल आदि महानुभाव इस सम्मेलन से निरंतर सम्बद्ध रहे। संस्कृत भवन के निर्माण हेतु सन् 1983 से कार्य योजना प्रारम्भ की गई। फलस्वरूप 1984 में महामहिम राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह के करकमलों द्वारा संस्कृत भवन का शिलान्यास किया गया।

अपने पूज्य पितृचरणों के प्रति अटूट श्रद्धा होने के कारण श्री रमाकान्त गोस्वामी जी एवं श्री ओ.पी. सर्राफ जी ने भरसक प्रयत्न करके इस कार्यक्रम का उत्तरदायित्व संभालते हुए और कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श करते हुए नई कार्यकारिणी के नेतृत्व में संस्कृत भवन का निर्माण सुचारु रूप से करवाया। श्रीमती शीला दीक्षित ने 25 मई 2002 को अपने कर-कमलों द्वारा सम्मेलन का उद्घाटन किया जिसकी अध्यक्षता सांसद डॉ. कर्ण सिंह ने की। भवन निर्माण के बाद सम्मेलन का सारा कार्य यहाँ से प्रारम्भ हुआ।

अखिल भारतीय संस्कृत साहित्य सम्मेलन की स्थापना के मूल में संस्कृत भाषा एवं उसके साहित्य के उत्थान प्रचार-प्रसार है। अतः संस्कृत भवन में एक विशाल ग्रन्थागार का निर्माण हुआ, जिसमें समस्त सन्दर्भ कोष, ज्ञानकोष, वेद, पुराण, उपनिषद्, धर्म, नीति, विज्ञान, कला सम्बन्धी दुर्लभ ग्रन्थों का संग्रह है।

यह सम्मेलन, संस्कृत तथा संस्कृत वाङ्मय के प्रचार-प्रसार तथा संरक्षण-संवर्धन हेतु कार्यरत संस्थाओं में से अन्यतम संस्था है। सम्मेलन के माध्यम से संस्कृत भवन तथा अन्यत्र सम्मेलन, संगोष्ठी, परिसंवाद, नृत्य, नाटक, काव्यसंगोष्ठी, प्रदर्शनी, शैक्षणिक तथा साहित्यिक कार्यशाला, भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम, ज्योतिष कर्मकाण्ड व वास्तु का प्रशिक्षण, विद्वत्सम्मान तथा छात्रवृत्ति प्रदान करने जैसे अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।